आपको कैसे पता चलेगा कि शेयर की कीमत बढ़ेगी या घटेगी, शेयर बाजार एक ऐसी जगह है जहाँ निवेशक अपनी पूंजी का निवेश करते हैं और लाभ कमाने की उम्मीद करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि शेयर की कीमतें कैसे बढ़ती या घटती हैं? इस लेख में, हम विस्तार से जानेंगे कि शेयर की कीमतों का भविष्यवाणी कैसे की जा सकती है और कौन-कौन से कारक इन्हें प्रभावित करते हैं। साथ ही, हम इसे समझने के लिए कुछ उदाहरणों का भी उपयोग करेंगे।

 

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1. तकनीकी विश्लेषण (Technical Analysis)

तकनीकी विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य शेयर की कीमतों में होने वाले रुझानों को समझना और भविष्यवाणी करना है। यह विश्लेषण चार्ट्स और तकनीकी संकेतकों का उपयोग करके किया जाता है।

चार्ट पैटर्न्स का उपयोग:
चार्ट पैटर्न्स उन ग्राफिकल रिप्रेजेंटेशन को कहते हैं, जो हमें शेयर की कीमतों के रुझान के बारे में बताते हैं। उदाहरण के लिए, हेड एंड शोल्डर पैटर्न एक रिवर्सल पैटर्न होता है, जो दर्शाता है कि शेयर की कीमत गिरने वाली है।

उदाहरण: मान लीजिए कि टाटा मोटर्स का शेयर एक चार्ट पर हेड एंड शोल्डर पैटर्न बना रहा है। इसका मतलब है कि इस शेयर की कीमत निकट भविष्य में गिर सकती है।

मूविंग एवरेज:
मूविंग एवरेज शेयर की कीमत के औसत को एक निश्चित समय अवधि के लिए गणना करता है। उदाहरण के लिए, 50-दिन और 200-दिन की मूविंग एवरेज का उपयोग यह देखने के लिए किया जाता है कि शेयर की कीमत में दीर्घकालिक और अल्पकालिक रुझान क्या हैं।

उदाहरण: यदि इंफोसिस का 50-दिन का मूविंग एवरेज उसके 200-दिन के मूविंग एवरेज से ऊपर चला जाता है, तो यह एक सकारात्मक संकेत होता है और कीमत बढ़ने की संभावना होती है। इसे गोल्डन क्रॉस कहते हैं।

2. फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental Analysis)

फंडामेंटल एनालिसिस कंपनी की बुनियादी ताकत का विश्लेषण करने पर केंद्रित होता है। इसमें कंपनी की आय, खर्च, लाभ मार्जिन, और उद्योग के प्रदर्शन का अध्ययन किया जाता है।

कमाई और लाभ:
कंपनी की कमाई और लाभ मार्जिन का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें बताता है कि कंपनी का व्यवसाय कितना लाभदायक है। अगर किसी कंपनी की आय लगातार बढ़ रही है, तो उसकी शेयर की कीमत भी बढ़ने की संभावना होती है।

उदाहरण: एचडीएफसी बैंक ने लगातार 5 वर्षों तक अपनी आय में 20% की वृद्धि दर्ज की है। इस कारण उसके शेयर की कीमतों में भी लगातार वृद्धि देखी गई है।

पी/ई रेशियो:
पी/ई रेशियो (प्राइस टू अर्निंग्स रेशियो) यह दर्शाता है कि किसी कंपनी की मौजूदा शेयर कीमत उसकी प्रति शेयर आय के कितने गुना है। एक कम पी/ई रेशियो यह संकेत देता है कि कंपनी का मूल्यांकन कम है और निवेशकों के लिए इसे खरीदना फायदेमंद हो सकता है।

उदाहरण: मान लीजिए कि मारुति सुजुकी का पी/ई रेशियो 15 है जबकि इंडस्ट्री एवरेज 20 है। इसका मतलब है कि मारुति सुजुकी के शेयर की कीमत कम है और भविष्य में बढ़ने की संभावना है।

3. बाजार का सेंटीमेंट (Market Sentiment)

बाजार का सेंटीमेंट शेयर की कीमतों पर बड़ा प्रभाव डालता है। बाजार का सेंटीमेंट सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है और यह विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।

समाचार और इवेंट्स:
बाजार का सेंटीमेंट मुख्य रूप से आर्थिक समाचार, राजनीतिक घटनाएँ, और वैश्विक घटनाओं से प्रभावित होता है।

उदाहरण: अगर सरकार ने नए टैक्स कटौती की घोषणा की है, तो बाजार में सकारात्मक सेंटीमेंट होगा और शेयर की कीमतें बढ़ सकती हैं।

इंडेक्स मूवमेंट:
सेंसेक्स और निफ्टी जैसे प्रमुख सूचकांकों का प्रदर्शन भी बाजार के सेंटीमेंट को दर्शाता है। अगर सूचकांक ऊपर की ओर बढ़ रहे हैं, तो इसका मतलब है कि बाजार में सकारात्मकता है और शेयर की कीमतें बढ़ सकती हैं।

उदाहरण: यदि सेंसेक्स 1% बढ़ता है, तो अधिकांश शेयरों की कीमतें भी बढ़ने की संभावना होती है।

4. मांग और आपूर्ति (Demand and Supply)

मांग और आपूर्ति का नियम शेयर बाजार में भी लागू होता है।

उच्च मांग और कम आपूर्ति:
जब किसी शेयर की मांग बढ़ जाती है और आपूर्ति कम होती है, तो उसकी कीमत बढ़ती है।

उदाहरण: यदि रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक नया उत्पाद लॉन्च किया है और निवेशकों को लगता है कि इससे कंपनी की आय में वृद्धि होगी, तो शेयर की मांग बढ़ सकती है और कीमत भी।

कम मांग और अधिक आपूर्ति:
जब किसी शेयर की मांग कम होती है और आपूर्ति अधिक होती है, तो उसकी कीमत घटती है।

उदाहरण: यदि किसी कंपनी ने खराब तिमाही परिणाम घोषित किए हैं, तो निवेशक उस कंपनी के शेयर बेच सकते हैं, जिससे आपूर्ति बढ़ जाती है और कीमत घट जाती है।

5. निवेशकों की भावनाएँ और मनोविज्ञान (Investor Sentiment and Psychology)

निवेशकों की भावनाएँ और मनोविज्ञान भी शेयर की कीमतों को प्रभावित करते हैं।

अत्यधिक लालच और भय:
जब बाजार में अत्यधिक लालच होता है, तो निवेशक अधिक खरीदारी करते हैं, जिससे कीमतें बढ़ती हैं। वहीं, भय के कारण निवेशक बेचते हैं, जिससे कीमतें घटती हैं।

उदाहरण: अगर किसी विशेष क्षेत्र में तेजी का माहौल है, जैसे कि आईटी सेक्टर, तो निवेशक उस क्षेत्र के शेयर खरीदना शुरू कर देंगे, जिससे शेयर की कीमतें बढ़ेंगी।

6. अर्थव्यवस्था की स्थिति (Economic Conditions)

देश की आर्थिक स्थिति भी शेयर बाजार की दिशा को प्रभावित करती है।

मुद्रास्फीति और ब्याज दरें:
उच्च मुद्रास्फीति और ब्याज दरें शेयर की कीमतों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।

उदाहरण: अगर भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाता है, तो निवेशकों के लिए ऋण महंगा हो जाएगा और वे शेयर बाजार से पैसा निकाल सकते हैं, जिससे कीमतें घट सकती हैं।

विकास दर:
देश की जीडीपी और औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर भी शेयर बाजार की दिशा को प्रभावित करती है।

उदाहरण: अगर सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश की घोषणा की है, तो कंस्ट्रक्शन कंपनियों के शेयर की कीमतें बढ़ने की संभावना होती है।

7. कंपनी की आंतरिक घटनाएँ (Company-Specific Events)

कंपनी की आंतरिक घटनाएँ भी शेयर की कीमतों को प्रभावित करती हैं।

प्रबंधन में बदलाव:
कंपनी में प्रबंधन के बदलाव से शेयर की कीमतें प्रभावित हो सकती हैं।

उदाहरण: यदि टाटा स्टील ने नए सीईओ की नियुक्ति की है और बाजार में उसकी सकारात्मक छवि है, तो शेयर की कीमतें बढ़ सकती हैं।

अधिग्रहण और विलय:
कंपनी के अधिग्रहण और विलय भी शेयर की कीमतों को प्रभावित करते हैं।

उदाहरण: यदि एशियन पेंट्स ने एक छोटी पेंट कंपनी का अधिग्रहण किया है, तो बाजार में इसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है और शेयर की कीमतें बढ़ सकती हैं।


 

शेयर बाजार में निवेश करना और शेयर की कीमतों का अनुमान लगाना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए गहरी समझ, शोध, और विभिन्न कारकों का अध्ययन करना जरूरी है। उपरोक्त रणनीतियाँ और संकेतक आपको बेहतर निवेश निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। लेकिन याद रखें, शेयर बाजार में जोखिम हमेशा बना रहता है, इसलिए निवेश करते समय सतर्क रहें और एक मजबूत योजना बनाएं।

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